वजूद
वजूद
क्या ग़ज़ब, मेरे क़ाबू से बाहर ग़र है,
मेरा दिल भी मेरा नहीं, तेरा घर है..
सोच कर क्या करूं,पाया किसे और खोया क्या,
सब मेरा है जो तेरे दर पे ये मेरा सर है..
दुनिया को यूं रोशनी से मत भिगा आफ़ताब,
हमें अधेरों की आदत है, रोशनी से डर है..
ज़रा ठहर ज़िन्दगी, कदम मिला तो लूं,
तेरी रफ़्तार मेरे पांवों की कूवत पे सर है..
वो गया तो यूं गया, कि जैसे कभी था ही नहीं,
मेरे शानों पे फ़क़त,अब मेरा ही सर है...
