इम्तिहान में ईमानदारी रखो
इम्तिहान में ईमानदारी रखो
मेहनत से बचते हैं और चोरी करते हैं,
ऐसे लोगों को ईमानदार कैसे कहते हैं।
आज खूब धडल्ले से हो रही नकल है,
लगता है गिरवी रख दी गई अक्ल है।
नकल करते रहते बना कर टोलिया,
भरती नहीं ख़ाली रहती हैँ झोलियाँ,
देखने लायक होती उनकी शक्ल है।
गिरवीं ही रख दी कहीं पर अक्ल है।
जूते-जुराबों मे मिलती हैँ परचियां,
क्या करेगा खड़ा पर्यवेक्षक दरमियां,
भाता न शक्श जो दे मध्य दखल है।
गिरवीं ही रख दी कहीं पर अक्ल है।
ज्यों का त्यों लिखने को आतुर वहाँ,
ले लो जो भी मिले कहीं से जो जहाँ,
बाड़ ही खा रही खेतोँ की फसल है।
गिरवीं ही रख दी कहीं पर अक्ल है।
कैसा भविष्य हो भावी परिवेश का,
क्या नजरिया बदलेगा ऐसी रेस का,
विद्या देवी को नहीं मिलता अदल है।
गिरवीं ही रख दी कहीं पर अक्ल है।
बेखौफ हर नकलची मनसीरत यहाँ,
नकल के माहौल मे रंग रहा है जहां,
खतरे से घिरी हुई फ़िजा-फ़जल है।
गिरवीं ही रख दी कहीं पर अक्ल है।
खूब धड़ धड़ल्ले से हो रही नकल है,
गिरवीं ही रख दी कहीं पर अक्ल है।