"हरियाली हो, खुशहाली हो"
"हरियाली हो, खुशहाली हो"


मैं हूँ डाली,
पर ढाल नहीं तुम्हारा,
छोटी, नटखट,और लचीली हूँ
ठीक वैसी ही, जैसी तुम्हारी
नन्हीं-प्यारी-दुलारी लाडली सी
मैं हूँ डाली ।।
मत काटो -मत मारो,
फलित-फूलित-पल्लवित हूँ
श्रान्त-क्लान्त पथिक की,
पथ मे छाया हूँ
मैं हूँ डाली ।।
फूटने दो शाखायें,
पंख फैलाने हैं,
चारा-पत्ती, ठंडी हवा भी लो
पर!होने तो दो!
मैं हूँ डाली ।।
हाय! मत जलाओ मुझे,
सहारे हैं मेरे, पौन-पंछी,
घरोंदे, घरौंदे
मे, अण्डे बच्चे,
ठीक तुम्हारे जैसे,
मैं हूँ डाली ।।
मुझ मे रस है,नीरस नही मैं,
हथियार हो चलाते, रोती तब मैं,
सूखी धरती जलविहीन,
काश! छू पाते तुम हरियाली,
मैं हूँ डाली ।।
मेरी साँसों में टिकी हैं,
साँसे तुम्हारी,
नासमझ-निर्मोही-निरबे निष्ठुर,
जियो!! और जीने दो !
मैं हूँ डाली ।।
जल-जंगल-जमीन बचाओ!
जैसी मेरी दुनिया निराली
हरी-भरी क्यारी हो!
हरियाली हो,खुशहाली हो!
आओ! मेरे अपनों!
मैं हूँ डाली।।