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Neetu Lahoty

Drama

3.7  

Neetu Lahoty

Drama

हर्फ़ दर हर्फ़

हर्फ़ दर हर्फ़

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हर्फ़ दर हर्फ़

मैं लिखता चला गया,

जिस रंग में तूने चाहा,

उस रंग में रंगता चला गया।


कभी जवाब माँगा नहीं मैंने,

अपने जहन में उठते सवालों का,

तेरे सज़दे में,

ऐ ज़िंदगी,

मैं बस झुकता चला गया।


ख्वाहिश कभी करी नहीं मैंने,

कि तेरी डोर काट दूँ,

ठोकर लगी,

तो बस उस जख्म को सिलता चला गया।


तेरे सज़दे में,

ऐ ज़िंदगी,

मैं जीता चला गया !

हर्फ़ दर हर्फ़

मैं लिखता चला गया।।


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