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हमवतन

हमवतन

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नदी का विरुद्ध प्रवाह चुनौती बने

और मैं स्वच्छंद रहूँ।

काश नहीं आकाश में परवाज़ लूँ।

पक्ष ही शेष रहे और मैं विशेष बनूँ।

हौसलों से फासले कम करूँ।

पीड़ा विस्मृत कर लक्ष्य को स्मृति में रखूँ।

विरुद्ध प्रवाह अशक्त करूँ।

युक्तियों से शक्त बनूँ।

संकल्प और धैर्य में सबसे विलग बनूँ।

मिट्टी से नाता रखूँ,

खौफ से फिर क्यों वास्ता रखूँ।

बरबाद नहीं आबाद करूँ,

समाज़ के उत्थान की बुनियाद बनूँ ।

हम वतन का साया बनूँ।

सुरक्षा का दिलासा बनूँ।

सदा सबकी यादों में रहूँ।

विश्वास की हकदार बनूँ।


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