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हमने दुनिया के गम उठाए हैं

हमने दुनिया के गम उठाए हैं

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हमने दुनिया के गम उठाए हैं।

तब कहीं रोशनी में आए हैं।


ये जो परछाईयां सिसकती हैं,

मेरी मजबूरियों के साए हैं।


अब किसी पर यकीं नहीं होता ,

हमने इतने फरेब खाए हैं।

 

चार दिन के लिए ज़माने में ,

ज़िंदगानी उधार लाए हैं।


ये जहां कितना बेमुरव्वत है,

चोट खाकर ही जान पाए हैं।


इक अंधेरा मिटा नहीं दिल का,

'दीप' हमने बहुत जलाए हैं।।


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