हमारे मियाँ, हमारे क़ाज़ी
हमारे मियाँ, हमारे क़ाज़ी
जिनका कहा कभी दख़लअंदाज़ी लगे
कभी वो हमें राज़ी लगे
किससे करें शिक़ायत जाकर
हमारे मियाँ हैं,
दुनिया की नज़र में हमारे क़ाज़ी लगे।
कभी हैरान परेशान होते हैं
बहुत सोच के फ़ैसले देते हैं
पर कुछ फ़ैसले हमको आसान लगें
कुछ ज़िंदगी की हारी हुयी बाज़ी लगे।
किससे करें शिक़ायत जाकर
हमारे मियाँ हैं,
दुनिया की नज़र में हमारे क़ाज़ी लगे।
ज़िंदगी में कुछ ऐसे रमने लगे हैं
कुछ हम उनमें कुछ वो हममें रहने लगे हैं
एक दूसरे की बोली भी बोलने लगे हैं
पर एक बनने में अपनी हस्ती खोने लगे हैं
सही ग़लत किससे पूछे जाकर
हमारे मियाँ हैं,
दुनिया की नज़र में हमारे क़ाज़ी लगे।