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Shweta Jha

Romance

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Shweta Jha

Romance

हम-तुम

हम-तुम

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कभी जब सोचती हूँ

तुम्हें , खुद को और हमें

और अक्सर पाती हूँ तुम्हें-मुझे दूर

मुझे-तुम्हारे पास और

हमें थोड़ा दूर-थोड़ा पास।।


यूँ तो बातों का दौर

रोजाना ही चलता है

इसकी-उसकी और

पूरे जग की

तो क्यूँ शब्द पड़ जाते हैं कम

हमारे लिए-हमारे पास ।।


कुछ नया सुनाने या

फिर पुराना कुछ याद दिलाने

जब भी होना चाहती हूँ तुम्हारे सम्मुख

क्यूँ लीन पाती हूँ तुम्हें स्वयं में

होकर भी क्यूँ नहीं होते तुम मेरे पास ।।


कि जब भी होती हूँ मैं उदास

और रो रहा होता है मन जार-जार

तुम्हारे शर्ट की सिलवटें

क्यूँ नहीं होती आँखों के पास ।।


अक्सर रातों में

नींद के आयोजन में विफल मैं

जब भी हो जाती हूँ बेचैन

तब तुम्हारी थपकियाँ

क्यूँ नहीं होती हैं मेरे पास !!


जब भी टटोलती हूँ हृदय

तो होती हूँ मैं दूर, तुमसे

तुम पास, मुझसे और

हम बहुत दूर और थोड़ा पास ।।


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