हम हैं कुशल कुम्हार
हम हैं कुशल कुम्हार
बालक में से झांकता ईश्वर का ही चित्र
निर्विकार निश्छल सरल, कलुष विहीन पवित्र।
माटी-सा है बाल-मन, हम हैं कुशल कुम्हार
गढ़ डाला हमने उसे, अपनी रुचि अनुसार।
भला बुरा अनुचित उचित, आस और विश्वास
बच्चे ने पाया वही जो था मेरे पास।
बच्चों को जैसा मिला बचपन में परिवेश
वैसा ही है आजकल यह समाज यह देश।
