हिसाब
हिसाब
ज़मीन तुझसे जब अपना हिसाब माँगेगी,
ये मजलिसों का नहीं सजदों का हिसाब माँगेगी।
दफ़न कर देगा तुझे ख़ाक में जब तेरा साया,
हर ज़र्रे की ज़ुबां तुझसे हिसाब माँगेगी।
जो पी गया हवाओं से ज़िंदगी अब तक,
शराब तुझसे नशे का हिसाब माँगेगी।
जब छोड़ देंगे उजाले तुझे इस दुनिया के,
रात कब्र की ख़्वाबों का हिसाब माँगेगी।
न पूछेगा कोई जब दफ़न करके तुझे,
तन्हाई तुझसे माशरे का हिसाब माँगेगी।
ये गुल को नेमतें यूँ ही तो नहीं थीं हासिल,
ये मिट्टी जब ख़ुशबू का हिसाब माँगेगी।
आदमी दे तो गया क़ुतबा बेनज़ीरी का,
और मौत जुमलों का हिसाब माँगेगी।
जो छोड़ आया है शिऱक के दरवाज़े ख़ुले,
रूह तुझसे आहटों का हिसाब माँगेगी।
जावेदा फिर नहीं रहती कोई क़ौम
जब ख़ुदायी परिस़्तिश का हिसाब माँगेगी।
