गुरु
गुरु
मन में उलझे हुए हर सवालों का जवाब हूँ,
जो पढ़ना चाहे उनके लिए खुली किताब हूँ,
जोड़, घटा और गुणा जहाँ तुम मुझे ढूंढो,
तुम्हारे हर उन सवालों का मैं ही हिसाब हूँ,
तुम्हारे हर गुजरते वक्त का मैं बना आईना,
पीछे पलटकर जब देखोगे मुझे साथ पाओगे,
हजारों शब्दों के शोर में मैं तुम्हारी आवाज हूँ,
विश्वास की पक्की डोर से बंधा हमारा रिश्ता,
नींव बनाई पक्की मैं तुम्हारी ही बुनियाद हूँ,
जीवन की पगडंडियों में चलना तुम्हें सिखाया,
बंजर धरती पर बारिश की हल्की सी फुहार हूँ,
सोई हुई सृष्टि को सूरज की किरण सा चमकाता,
अंधकार में जलता हुआ मैं वो एक प्रकाश हूँ,
कभी कड़वा तो कभी मीठा घुलता अहसास है,
गुरु तो गुरु है वो बहुत ही खास है...... खास है II