पेड़ और कुल्हाड़ी के बीच संवाद
पेड़ और कुल्हाड़ी के बीच संवाद
पेड़: बड़ी ही बेदर्दी से तुम मुझ पर वार करते हो,
काटते जब मेरी शाखाएं थोड़ी भी दया नहीं दिखाते हो,
कुल्हाड़ी: मैं तो सिर्फ अपने मालिक की जी हुजूरी करता हूं,
इसमें मेरा क्या कसूर मैं तो केवल अपना कार्य पूरा करता हूं।
पेड़: दर्द मुझे भी होता है, कृपया थोड़ी तो तुम दया दिखाओ,
मेरा हनन करके उसका ही नुकसान है तुम जाकर यह समझाओ,
कुल्हाड़ी: करने दो मुझे अपना कार्य तुम बातों में ना मुझे यूं फंसाओ,
मालिक की गुस्से में हो रही आंखें लाल कृपा कर तुम चुप हो जाओ।
पेड़: बरसों से सह रही हूं, प्रताड़ना कितना मुश्किल है मनुष्य को समझाना,
मेरे महत्व को ना समझेगा अभी तो भविष्य में पड़ सकता है पछताना,
कुल्हाड़ी: मैं तो एक निर्जीव वस्तु हूं, भावनाओं को नहीं समझता हूं,
किंतु न जाने क्यों तुम्हारे दर्द को मैं आज महसूस कर सकता हूं।
पेड़: काश !जैसे तुम समझे हो, मनुष्य भी वक्त पर यह समझ जाता,
स्वयं के साथ वो अपने बच्चों का भी भविष्य सुरक्षित कर पाता,
कुल्हाड़ी: दुखी हूं तुम्हारे दुख से पर लाचार हूं कुछ कर नहीं सकता,
काश! ईश्वर हम निर्जीवों को भी अपनी बात कहने के लिए जुबां देता।