नशा।
नशा।
देख दुनिया का यह तमाशा, मैं तो हूँ बड़ा हैरान ।
कोई कहता मैं हूँ सब कुछ, ईश्वर से है अनजान।।
हर कोई अपने नशे में चूर है, करता है अभिमान।
मदहोश की खुमारी उस पर चढ़ती, चलता सीना तान।।
होश नहीं उसको यह रहता, करता अपने गुणगान।
हुए खुद नहीं जानता, कौन कराता, उससे यह बखान।।
नशा करके खुद समझाता, इसमें छिपी है जान।
वह क्या जाने, यही नशा, उसको कर देगा परेशान।।
दूध का धुला कोई नहीं है, नशा में है सारा जहान।
किसी को धन का, किसी को बल का, कोई नहीं एक समान।।
लेकिन प्रभु मैं समझ न पाता, क्यों देता मैं ज्ञान।
नशे में बैठा एक व्यक्ति, खुद में है अज्ञान।।
कौन कराता ,क्यों है करता, खुद हूँ बड़ा हैरान।
तेरी लीला को समझना बड़ा कठिन है," नीरज" का रक्खो ध्यान।।
