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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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ये आनन्द का शहर है

ये आनन्द का शहर है

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ये आनन्द का शहर है

और यहाँ सब आनन्दमय है

फिर भी कुछ लोग

तलाश में हैँ आनन्द की

भीड़ भरे रास्तों में

गिरते उठते सम्भलते

ढूंढ रहे हैं आनन्द के शहर में

आनन्द।

अब इसे दृष्टिदोष कहें या

दुनियादारी

समझ कहें या

नासमझी

होश कहें या बेहोशी

सोचना भर है

और कहना युद्ध को आमंत्रण

चलो चुप ही रहते हैं

और सुनते हैं

ब्यस्त लोगों की बहसों का शोर

उनकी खामोशी तक

आनन्द में डूबे हुये

अपने सबसे सुंदर मित्र के साथ।


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