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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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हमारी कोशिशें हैं

हमारी कोशिशें हैं

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हम हैं

और हमारी कोशिशें हैं

असफलताओं के जंगल में

सफलता का पता है

वो भी इतना सा कि

जिसकी तुम्हे तलाश है

और तुम्हारे साथ है।


एक विश्वास है इस बात पर भी

और इस यहसास को

ब्यक्त करने वाले पर भी

और इस विश्वास का आलम ये है

कि घिर गये हैं हम

इस विश्वास में।


कितनी अजीब लग रही है

हालात पर 

चलती हुयी चर्चाएं

पालकी ढ़ोते हुये कहारों की

उनकी नीयत की

और पालकी में बैठी हुयी


अपाहिज सी दुल्हन 

कितनी खामोश है

और मन ही मन

सोच रही है

कहाँ घर है प्रीतम का

एक उम्र ही गुजर रही है पालकी में।


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