गुनहगार नहीं
गुनहगार नहीं
अंतस की उमसती गड़गड़ाहट प्रतीक्षित है,
मेरे उग्र एहसासों को थामें
विस्फोट की कगार पर खड़े गर्जन करती उर्मियों को
मुक्त कर दो कोई..
कितना नियंत्रित करूँ मेरे भीतर भरी असीम ऊर्जा को,
अग्नि संस्कार किए जा रहा है मर्दों का एक समूह
मेरी दक्षता को नज़र अंदाज़ करते..
गुनहगार नहीं जो बंदी रहूँ सात फेरों के संग बनी ब्याहता हूँ
सज़ा ए सुख की हकदार को दमन कर दासी बनाए जाते हो,
होंठों पर मेरी मोर पंख सी मुलायम हंसी न मल सको ना सही
आँखों में अश्कों की लड़ियां क्यूँ भरते हो..
दिल करता है जुनून से बरस जाऊँ हर वेदना को तूफ़ान में बदलते,
तड़ीत सी गरज जाऊँ,
समाहित कर लूँ मेरी ज़िंदगी का शिकार करने वालों को
मेरे तरकश से छूटे तीर की नोक में..
थकी आयु को समेट लूँ?
या शक्तिशाली होते चकनाचूर कर लूँ दहेज के लोलुप कायरों को
कोटि सदियाँ बीती बिनती करते अब ठठरी हो गए एहसास..
सुधि छीन कर साँप है बैठा नारी सर पर नाचे
चुटकी भर सिंदूर ज़हर सा कितने सारे सवाल करता
पिंजर तोड़ कर मुक्त हो जाऊँ या कर दूँ काम तमाम सबका..
