गरीबी
गरीबी
सदा से हम ढोते आए है, गरीबी का भार।
सदा ही रहे हम बेबस गरीब और लाचार ।।
अपनी मेहनत का ही हमने है सदा खाया ।
सच कहूं किसी के आगे हाथ नही फैलाया ।।
लेकिन गरीबी भी हमारी है शायद अनन्त ।
कहीं कोई कभी भी इसका नही है अन्त ।।
पापो का फल है हमारे या विधाता क्रूर न्याय ।
जो हमारे जीवन में जुड़ा यह काला अध्याय। ।।
जरूरते पूरी नही होती अभाव में पिसते रहते ।
बच्चे शिक्षा स्वास्थ्य तो दूर दाने को तरसते।।
विकास हुआ योजना भी बनी पर गरीबी न मिटी।
कहां क्या किसमे है खोट जो गरीबी है डटी ।।