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Vipin Baghel

Tragedy Classics Abstract Inspirational Fantasy

4.8  

Vipin Baghel

Tragedy Classics Abstract Inspirational Fantasy

गरीबी की मार

गरीबी की मार

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मैंने उसको दर दर पर ,

गिरते झुकते देखा है।

दो सिक्कों के लिए उसको ,

गिरवीं रखते देखा है।


चाहत है बस दो रोटी की ,

करता सबसे मिन्नत है .

कभी कभी उन रोटी की भी ,

रहती फिर भी किल्लत है।


तन पर कपड़े कम हैं उसके ,

अब मन में ख्वाव हुए कम हैं।

दो मुठ्ठी को हाथ पसारे,

दुबला पतला हुआ बदन है।


जीर्ण शीर्ण है सूरत उसकी ,

हड्डी हड्डी तन को जकड़े |

गठरी एक रखी है सिर पर ,

निकल पड़ा जीवन को पकड़े।


पेट भूख से तड़प रहा है ,

पानी पी पी लोट रहा है।

घोर तिमिर में रह रह कर ,

जीवन अपना काट रहा है।


सुख की बस तस्वीर बनाकर ,

सपनों में रख लेता है।

भोर में उठकर तोड़ सपन को ,

मन ही मन रो लेता है।


निकले सूरज बहुत गगन में ,

पर उस तक एक किरण न आयी।

बड़े बड़े भूखे बाघों ने ,

मिली हुई सब दौलत खायी।


चलता है वो रोज नदी सा ,

पल पल घाट बदलता है .

मिले न दीपक अगर रात में ,

खुद दीपक बन जलता है .


अगर हटा ले कंधे अपने ,

कोई बोझ न सह पायेगा .

झुका अगर ले अपने कर को ,

सकल राष्ट्र फिर झुक जायेगा .


अब उसको हर दो डग पर ,

थकते मैंने देखा है .

मैंने उसको दर दर पर ,

गिरते झुकते देखा है .


बीमार पड़ा है फिर भी उसको , 

बोझ उठाते  देखा है।

थके हार कर , काम किया पर ,

खाली हाथों देखा है।


उसने सबके बना घर दिए ,

पर रोज उजड़ते देखा है।

कभी यहाँ तो कभी वहां पर ,

चलते फिरते देखा है।


सारी उमर कमाई रोटी , 

जरा में भूखा सोता है।

अपनी उजड़ी व्यथा देखकर ,

बाहें भर भर रोता है।


जीवन के अंतिम पड़ाव पर ,

कोई साथ न देता है .

जो भी था वो बेच दिया ,

फिर भी पेट न भरता है . 


कल उसने अपने मालिक से ,

कुछ पैसे उधर लिए |

उन पैसे के बदले उसने ,

देर रात तक काम किया।


सुबह उठा तो उसके अंदर ,

एक अजीब सी जकड़न थी।

गया न फिर वो अपने काम पर ,

अस्थि अस्थि में अकड़न थी।


फिर डरकर वो गया न काम पर ,

निकल गया फिर अलग राह पर।

राह किनारे चलते चलते ,

निकल गया वो अंतिम पढ़ाओ पर।


मरे तो उसकी कोई फ़िक्र न ,

जिए तो कोई न करता है |

एक कफ़न और दो गज में ,

दफ़न न कोई करता है।


राह किनारे पड़े शवों का ,

अंत वहीं हो जाता है।

कभी कभी फिर कोई मानुष ,

क्रिया कर्म करवाता है।


मैंने उसको दर दर पर ,

गिरते झुकते देखा है।

दो सिक्कों के लिए उसको ,

गिरवीं रखते देखा है।










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