गरीबी
गरीबी
मैं गरीब हूँ इसलिए
हर वक़्त मजबूर हूँ।
कितने ज़ुल्मों सितम का सताया हुआ
जाने कितनी ही चोटे मैं खाया हुआ
दाने दाने को तरसता मैं बदनसीब
खुशी न जाने क्यों नहीं आती करीब
मजबूरियों ने जकड़ा दुखों से चूर चूर हूँ
नीले आकाश तले रहता हूँ मैं
इसको ही अपना सब कुछ कहता हूँ मैं
नहीं किसी से कोई आस है
बदन पे फटा हुआ लिबास है
जाने कितने तनावों में डुबा हुआ
हो गया कैसा बेनूर हूँ
कूड़ा प्लास्टिक जब चुनता हूँ मैं
न जाने कितने सपने बुनता हूँ मैं
कड़ी धूप में कैसे जलता हूँ मैं
तब कहीं जा के पलता हूँ मैं
दर दर भटकता कैसा रंजूर हूँ
सूखे होठों पे मेरे कैसी प्यास है
ऊपर वाले से लेकिन बड़ी आस है
मेरी दुनिया को एक दिन सवारेगा वो
ग़मो के भंवर से उबारेगा वो
ऊपर वाला नहीं क्रूर है।