गरीबी के गुनहगार
गरीबी के गुनहगार
एक गरीब बचपन के गुनाहगार
ना -ना -ना बाबूजी मुझे भीख नहीं चाहिए,
भीख में मिली दया नहीं चाहिए ..!
हो सके तो प्यार दो,एक हंसी उधार दो ..!
मुझ गरीब को मेरी तंग तस्वीर नहीं चाहिए,
गरीबी का मारा बचपन नहीं चाहिए,
हो सके तो वक्त दो,एक पल उधार दो ..!
ना, मुझे कानून की किताबें चाहिए,
बड़ी -बड़ी बात़ों के भाषण भी नहीं चाहिए,
हो सके तो साथ दो,एक मदद का हाथ दो ..!
काली ठुठुरन भरी सर्द रात नहीं चाहिए,
धूप की तपिश, ना तेज़ बारिश की बौछार चाहिए,
हो सके तो आसरा दो, एक नजर मुस्करा दो..!
ना ही थपेड़ों में सिसकता बचपन चाहिए,
मां -पिता को गर्दिशों का सरकारी आंकड़ा नहीं चाहिए,
हो सके तो संवार दो, मुझे कोई आकार दो ..!