बाल मजदूर की खुशी ..
बाल मजदूर की खुशी ..
झीने वस्त्रों से झांकता भूखा पेट ..
मलिन तन कई दिनों से नहाया नहीं ..!
दांतों के बीच फंसी सुपारी ..
हाथों की दरारें सिसकती ..!
बचपन ढोता , बुढ़ापा ढोता ,
और ढोता लम्बी कतार भाई -बहन की ..!
कानूनों को ढूंढता , समाजवाद , राष्ट्रवाद को ढूंढता ,
उनमें अपने ठिकाने ढूंढता ..!
कानों में लीड लगाकर कभी -कभी टहलता ,
माथे की शिकन हटाता , थोड़ा सा हंसता ..!
हां ! मोबाइल में गाने सुनता ,एफ . एम. सुनता एक खुशी ढूंढता ।
चंद पैसे से डेटा रिचार्ज करता आंखों से छलकता...!
अपनी मजदूरी का कुछ हिस्सा एक अदद खुशी की खातिर देता..!
भूखे पेट गाने सुनकर सो जाता ..!
शायद ! वह मजदूरी इसलिए करता ..!
मन सोचकर रह जाता ..!
यही खुशियों का पैमाना होता ..!
पूंजीपतियों की दुनिया के सच में समाजवाद मुंह ढक कर सो जाता ..!
