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Sunanda Aswal

Abstract Fantasy

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Sunanda Aswal

Abstract Fantasy

विरह तुम सो बैरी न कोय

विरह तुम सो बैरी न कोय

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पिता की आज्ञा अनुसार और विधि के विधान सम्भवतः लक्ष्मण जी ने ,श्री राम और सीता जी के साथ वन को प्रस्थान किया ,अयोध्या को छोड़ गए ,उनकी पत्नी उर्मिला जी के लिए ऐसा अवसर आया होगा जब विरह वेदना को उन्होंने महसूस किया होगा ..!

उनके हृदय में जो भाव आए होंगे जो कुछ इस प्रकार से होंगे :


विरह तुम नीर ...

नयन अधीर..!

शीतल पवन ..

जले अग्न..!

मुख सारंग ..

कांति का अंत ..!

तरु की छांव ..

लागे है घाव..!

नैनों में अंजन ..

ना ताकू दर्पण ..!

पीय हैं फूल...

हिय बने शूल ..!

मुख लावण्य..

मलिन पड़ी लय ..!

विरह दंश..

हौं अपभ्रंश ..!

नदी के तीरे..

खड़ी निहारे ..!

आस की बाती ..

बुझे ना राती ..!

जल -जल ..

मैं जल - मच्छली पल -पल ..!



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