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Sunanda Aswal

Romance Fantasy

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Sunanda Aswal

Romance Fantasy

खिलखिलाए प्रेम दस्तक

खिलखिलाए प्रेम दस्तक

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एक दिवस:

बसंत ऋतु सिय -राम उर में समाय

प्रेम के दहलीज में चकोर छाय!

पूछे मन के भ्रम टकटकी लगाय,

मेघ तुम क्यों नहीं जल बरसाय ?


प्रेम -अमृत घट कभी भरे ना हिय !

अग्नि लिप्त शूल जलता रह गया !

हिमांशु रजत ओज बिखरता रह गया !

अधूरा अक्ष बना रह गया !


जब:

बूंद बूंद मधु लेने अलि आते हैं

खिलखिलाती हंसी छोड़ जाते हैं !

दूर रश्मिरथी अश्व भानु लाते हैं

क्षीर सिन्धु कण कण भरते हैं !

प्रेम के निशब्द संदेश आते है

गुंजन कर कर्णों में रस घुल जाते हैं !


पश्चात :

तरु पर पुष्प आच्छादित हैं

प्रकृति को प्रण्य अर्पित करते हैं !

प्रेम छव अंकित मन है

बंद नेत्रों में सांचे-हरि दिखता है !


सत प्रेम के समीप है

मिथ्या जग लगता है !

प्रेम वो अदृश्य बंधी डोर है

खींचता कोई और है !


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