मुक्ति
मुक्ति
एक अतृप्त आत्मा अंधियारे में,
भटकती कई इच्छाएं सुलगती राख में..!
जीवन पर्यंत बोझ को चिंता चिता में,
सुलगाती चिंगारियां लगाकर आग में ..!
शोक मनाती श्मशान में,
डूबती सांझ चीरती वीराने में ..!
कसकर हाथ जिजीविषा नाव में,
किनारा चाहती बीच मझधार में ..!
मृगतृष्णा झुलसती रेगिस्तान में,
भटकती तपती गर्म रेत में ..!
पीड़ित दुःखी घाट में,
मोह में विछोह में ..!
मोक्ष की छटपटाहट में,
फिर गायब हुई अंधियारे में ..!
बह चुकी सरिता में,
चुन लिए फूल यादों में ..!
मुक्त के द्वार के प्रारंभ में,
चमक मिली गई राख में ..!