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Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

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Akanksha Gupta (Vedantika)

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साइकिल मेरी दोस्त

साइकिल मेरी दोस्त

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मेरी साइकिल पर चलता रहता है आज भी

बचपन की यादों का कारवां अनोखा सा,

मीलों तक जाना जाकर वापस लौट आना

रास्तों में यारों संग सपनों के मोती पिरोना,

पीछे मुड़कर रुक जाना और करना यारों का इंतजार

पीछे बैठकर दुनियाभर की होशियारी सिखाते थे दो चार,

कभी जो होती तनातनी यारो संग बाजार में

पिचके हुए पहिये की साइकिल पैदल चलती तकरार में,

जाने कितने लम्हे ऐसे ही जिये है साइकिल के इन पहियों पर

बचपन का यह साथी अब छूटा समय की तेज रफ्तार पकड़।


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