गर्दिश
गर्दिश
गर्दिश में हो सितारें
तब पड़ता है रोना,
सड़क बिछौना बने
वहां पड़ता है सोना।
जब से रोग फैला
मज़दूर हुए बर्बाद,
रोटी रोजी छीन गई
आये बीते दिन याद।
खाने को रोटी नहीं
सोने को नहीं है घर,
ऐसी महामारी फैली
लगता बहुत ही डर।
सड़क हो या पटरी
बना मज़दूर बिछौना,
देख देख बदहालात
आया बहुत ही रोना।
कहां जाए क्या खाए,
मिलता नहीं ठिकाना,
दर्द बहुत मिल चुके
वतन लौट कर जाना।
दाता बुरे दिन मत दे
देखों बच्चे रोते खूब,
सूखे टुकड़े चाब रहे
भूल गये रोटी व दूध।।