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Anshupriya Agrawal

Tragedy

3  

Anshupriya Agrawal

Tragedy

अधूरी स्वतंत्रता

अधूरी स्वतंत्रता

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शोषण ,भूख ,गरीबी, लाचारी 

बढ़ती अराजकता खोती आजादी !

परतंत्रता के भस्मासुर से हाथ 

बढ़े किंकर्तव्यविमूढ़ता के साथ ।।


स्वतंत्रता ठिठकती ,

सकुचाती ,घबराती ।

दुविधाओं की धूमिल ,

आकाश में छुप जाती ।।


मनहूसियत मुख खोले,

वीरानी फैलाती ।

स्वतंत्र होने की,

अभिव्यक्ति को झुठलाती ।।


कानून की पट्टी ,

सारा सच को मूँदे ।

अंधविश्वास जड़ों में घुसकर ,

रूढ़ियों को बस चूमें ।।


मृत्यु का मजहब नहीं ,

रक्त केवल सुर्ख यहीं ।

फिर भी इंसानियत कैद,

और साँसे घुटती रही ।


घृणा, द्वेष की वादियाँ ,

बुझाती आत्मा की बत्तियाँ ।

सूरज का चेतना गुल, बढ़ाता,

तिमिर, तम, की गहराइयाँ ।।


सुलगते ,जलते प्रश्न ,

बुद्धि ,तर्क ,ज्ञान ध्वस्त।

परतंत्र मन का दर्प,

अभिमान रहता मस्त।।


आजादी का सतरंगी सपना,

केवल कुछ का ही है अपना ।

गुलामी की जंजीरों की जकड़न ,

लोकतंत्र में भी तानाशाही शोषण ।।


आजाद हुए ! पर क्या आबाद हुए?

तरक्की कहते ! कैसे बदहाल हुए !

क्यों पसरता शोक और मातम ?

चुटकियाँ लेते गरीब कंधों पर हम !


कब सही मायने में ,

स्वतंत्रता आएगी ?

परतंत्रता के तम को ,

मिटाकर दीप जलाएगी।।


मृग- मरीचिका सी यह स्वतंत्रता ,

आजाद ,स्वच्छंद हो जाएगी ?

सच्ची आजादी की खुशियाँ,

सुख -चैन आनंद बरसा जाएगी ।।




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