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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy Inspirational

बेरोजगारी

बेरोजगारी

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ये बेरोजगारी बड़ा रुलाती है

हमे रातों को बड़ा सताती है


क्या होगा रे अब तेरा साखी,

ये बेरोजगारी हमको जलाती है


आधी जिंदगी मैंने पढ़ाई की,

फिर भी नौकरी न नसीब हुई,


अब ज़माने के इन तानों से,

जान मेरी यूँ ही चली जाती है


ये बेरोजगारी भूखा सुलाती है

ये बेरोजगारी बड़ा रुलाती है


ये कैसी शिक्षा मैंने ले ली,

कोई व्यावसायिक चीज न दी,


कस ले अब तू कमर साखी,

ये बेरोजगारी सँघर्ष सिखाती है,


आग में तपेगा जितना सोना,

उतना ही उसे खरा बनाती है


ये बेरोजगारी जीना सीखाती है

रण में हमको बहादुर बनाती है


ये बेरोजगारी उन्हें रुलाती है,

जिनकी शक्ति क्षीण हो जाती है


बेरोजगारी उन्हें सफल बनाती है

जिनकी श्रम से बन जाते हाथी है



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