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Kunda Shamkuwar

Abstract Others Tragedy

4.5  

Kunda Shamkuwar

Abstract Others Tragedy

लहरें

लहरें

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77


आसमाँ में बादलोँ के पार जाने के ख़्वाब.....

चाँद को छूने के ख़्वाब.....

जो स्त्रियाँ ख़्वाब देखती है वह किसे पसंद होती है भला?

समाज को?

बिल्कुल नही....

समाज तो पुरूषों के बनाये कायदे कानूनों से चलता है.....

पुरुष को अच्छा लगता है कि स्त्रियाँ उनके अनुसार चले....

उनके अनुसार देखे....

कभी कभी तो उसे लगता है कि स्त्री उसके अनुसार सोचे भी....

और बहुत बार स्त्रियों को पुरुष की पसंद भाती है.....

और कभी कभी वह उसके अनुसार सोचने भी लगती है....

उसे वह प्रेम समझने लगती है....

प्रेम में क्या तेरा मेरा होता है भला?

प्रेम तो प्रेम होता है......

अथांग......

विस्तीर्ण.....

लहरें हर बात पर राजी होती हैं......

वह कभी किनारों की तरफ़ भागने से मना नही करती हैं......

प्रेम की हर लहर बस किनारें की तरफ़ भागती रहती हैं......

हर वक़्त......

बार बार......



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