उड़ान
उड़ान
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
थक चुकी हैं आँखें उसकी, दब चुकी है ज़ुबान
कैसी माँ हो तुम जिसे है ना अपने बच्चे का ध्यान
ठुकराई हुई अपनी ससुराल से ढूंढा अपना घर
रास्ते तय करते ही निकल गयी पूरी उमर
ना तेरा ये ना तेरा वो घर कह कह के हटाया
क्या लड़की होने का ये जुर्म उसने होने पर कमाया
खटखटाते हुये एक बार माँ-बाप की दहलीज पर
देख उसे माँ का अश्रुओं से दिल भर आया
भैया भाभी की तीखी नज़रों ने फिर एक बार ठुकराया
बोले सारा जहां क्या करेगी दरबदर फिर के
चली जा वापिस जहाँ उठनी थी तेरी अर्थी
विवाह के बाद स्त्री का कोई अस्तित्व नही
उसने किया इस सोच का विद्रोह सही
फिर उठी उबलती आग सी वो जीने को अपना सम्मान
ना हो आगे कभी किसी और स्त्री का अपमान
यही सोच लिये बन गयी वो लक्ष्मीबाई की तरह
जिद्द लिये आसमान पर बिछाने को सतह
सपना उसके ख़्वाबों में सिर्फ अपने संतान के लिये
गर्वित हुई फिर एक बार वो स्त्री रूप लिये।