माँ एक निःस्वार्थ प्रेम
माँ एक निःस्वार्थ प्रेम
मेरी गलतियों को कुछ इस तरह से सजा देती है
लाड लाडा कर अपने आँचल में छुपा लेती है
मैं रूठ भी जाऊ तो मुझे यूँ मन लेती है
आँखों में गुस्सा और होठो से मुस्कुरा देती है
बाबूजी की मार से हमे बचाया तूने
संघर्षो से लड़ना सिखाया तूने
क्यों तेरा कर्ज चूका नहीं पाते हैं
तुझे बोझ समझ यूँ आश्रम छोड़ आते हैं
माँ बहुत याद आती है तेरी इन दूरियों में
एक सुकून सा मिलता है तेरी खनकती चूड़ियों मैं
संस्कारों का प्रमाण तेरी इस मूरत से दिखता है
तेरा पढ़ाया हुआ हर पाठ मेरे जमीर मे रिस्ता है
मेरी उम्र भी तुझको लग जाए है ऐसी कामना मेरी
न करू किसी स्त्री का अपमान हो ऐसी भावना मेरी
मेरी माँ मेरा जीवन मेरा सम्मान है
मेरे संघर्षों में मेरी माँ ही मेरी पहचान है।
