Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

धरती मत खोदो

धरती मत खोदो

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इस धरती मां को खोद रहे है

खुद की क़ब्र को खोद रहे है

कैसे ये मानव लोग सुधरेंगे,

अपनी ही माँ को रौंद रहे है


माँ बेटे का बुरा नही सोचती,

बेटे अर्थ को ख़ुदा बोल रहे है

स्वार्थ का तराजू तोल रहे है

इस धरती माँ को खोद रहे है


ये महामारियां, ये बीमारियां,

दूषित कर्मो की है ,क्यारियां,

खुद के कर्मो को भोग रहे है

अपनी ग़लती को खोद रहे है


गर हम न सुधरे, प्रकृति सुधारेगी,

देकर हम दुष्टों को दंड वो मारेगी,

कैसे नरक में खुद को झोंक रहे है

पवित्र रूह को कैसे नोच रहे है


लोभ, लालच में धरती मत खोदो,

पापों की चादर यूँ ना मत ओढ़ो ,

पापों से तुम अपनी तौबा करो,

वो परमात्मा हम पे रहम कर रहे है



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