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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

अहसान फ़रामोश

अहसान फ़रामोश

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वो ही आजकल हमे दिखा रहे आँख है

जिनके मुँह में नही है बिल्कुल कोई दाँत है

मैं बात कर रहा हूं, एहसान फरामोशों की

जिनकी मदद की थी हमने बिन बात है

कैसा ये दुःखदायी ज़माना आ गया है

एहसान फ़रामोश होना आम बात है

लगता है वो भूल गये अपनी औक़ात है

जब उनको हर तरफ से मिल रही थी,


झमाझम दुःखों की घनगोर बरसात है

तब हमने बिना ज़माने की परवाह किये,

दी थी उनको पनाह बिन तहकीकात है

वो ही आजकल हमे दिखा रहे आँख है

जिन्हें चड्डी सँभालना भी हमने सिखाया,

आज वो ही लोग मार रहे हमे लात है

ऐसे लोगो का अब करे तो भी क्या करे,

जिस थाली में खाते उसे करते ख़राब है

ख़ुदा क्या उन जैसों को माफ़ कर देगा,

जिन्होंने रोशन आफ़ताब में दिया दाग है


अंधेरे से कभी कोई दीपक हारता नही है

मरकर भी उजाला देना वो छोड़ता नही है

तुम भले आज अंधकारमय लोग जीत लो,

याद रखना फिर होगी हमारी मुलाकात है

हम लड़ेंगे और जीतेंगे सत्य हमारे साथ है

हारेंगे और रोयेंगे असत्य के जज़्बात है


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