घर और फ्लैट
घर और फ्लैट
घर की याद बहुत आती है ,
जब मै फ्लैट में रहता हूं ,
बंद दरवाजे और खिड़कियां ,
देख घुटन अब होती है ।
रोज बालकनी में जब आऊं ,
ना चिड़िया ना खुला आसमां ,
बहुमंजिला कई इमारत ,
देख उसे अब मैं घबराऊं ।
लिफ्ट से ऊपर नीचे होता ,
दो कमरे के फ्लैट में ,
पड़ोसी कौन जब नहीं पता ,
रात में देख उसे घबराऊं ,
घर की याद बहुत आती है ,
जब मैं फ्लैट में रहता हूं ।
घर का आंगन कहां मिले अब ,
वो तुलसी का पौधा गायब ,
वो रोज उधम चौकड़ी गायब ,
अकेलेपन से मैं घबराऊं ।
बगल के रिश्ते के चाचा से ,
जो मैंने भी कुछ सीखा था ,
आज पड़ोसी के बंद दरवाजों से ,
अब खुद से ही मतलब रखना था ।
देर शाम जब सड़क पर निकलूं ,
लोग सिर्फ अपने सपनों में थे ,
ना तुम जानो , ना हम जाने ,
बस हमें अकेले रहना था ।
घर की याद बहुत आती है ,
जब मैं फ्लैट में रहता हूं ।