अधूरे लोग
अधूरे लोग
कुछ अधूरे ख़्वाब, कुछ अधूरे लोग,
मगर सब कुछ करते अधूरे लोग,
हम थे पूरे फिर भी हैं अधूरे,
फिर ना जाने क्यों रह गए पीछे हम जैसे अधूरे लोग,
लोगों में बड़ा ही रिश्ता था,
हर रोज़ ये मसला आपस में पिसता था,
फिर ख़्वाब ही सारे टूट गए,
एक दूसरे से ही सबके-सब रुठ गए,
फिर ना जाने क्यों रह गए पीछे हम जैसे अधूरे लोग,
ख़्वाबों में अपना बिस्तर था,
हर लम्हा हमसे निस्तर था,
फिर कुछ याद आई मेरी पलकों पर,
शाम-ओ-शहर तेरी जल्फ़ों पर,
फिर पलकों के किनारे हमें लूट गए,
फिर कुछ ख़्वाब पुराने टूट गए,
फिर ना जाने क्यों रह गए पीछे हम जैसे अधूरे लोग..!!
