गजल
गजल
ये मेरी शोहरत और मेरी इज्जत।
यह सब कुछ भीम का ही दिया।
ये धन दौलत और शान ए शौकत
इसे मैंने आज जी भरकर जिया।
मेरा वजूद पशु से भी था बदतर,
भीम ने मुझे आदमी बना दिया।
मैं तो चलता था धरा पर रेंगकर,
सिर उठाना भीम ने सिखा दिया।
बनाकर संविधान तोड़ दी जंजीरें,
सम्मान का पल आज मैंने जिया।
नारी कैद थी चारदीवारी में कभी,
तोड़कर जंजीरे उसे आजाद किया।
समता और स्वतंत्रता देकर हमें,
उन्नति का नूतन मार्ग खोल दिया।
अनपढ़ता के अंधकार में डूबा मन,
शिक्षा के प्रकाश ने उजाला किया।
