मैं नहीं मेरी कलम बोलती है।
मैं नहीं मेरी कलम बोलती है।
मैं नहीं मेरी कलम बोलती है।
गिरी हुई पलकें,
झुकी हुई जुल्फें।
सांसे सो रही हो जैसे,
पुष्पों के शय्या पर।
अम्बर भी आशिक़ हो जाएं ,
तुझे देख कर।
तू परियों जैसी लगती है।
मैं नहीं मेरी कलम.................।
जिस राह पर जाए,
वहां कलियां भी शर्माए।
तुझे देख कर।
पतझड़ भी हरा हो जाए,
कोयल मीठी- मीठी गीत सुनाए।
तुझे देख कर।
तुझे देख कर जल धर बारिश कर दे,
पाने की ख्वाहिश में, भौंरा हां हां भर दे।
तुझे देख कर।
तू सुमन से निकली हुई कली लगती है।
मैं नहीं मेरी कलम....................।
तू लड़की नहीं चंचला है।
तुझे देख कर मेरा दिल तुझ पर डोला है।
तू कहे तो मैं हजारों तारे तोड़ लाऊं आसमां से।
कदमों में हाज़िर करके सीने से लगा लूं।
तू किसलय पर बिखरी हुई शबनम हो।
चलती- फिरती सुगंधित हवा हो।
तू फुलवारी से निकली हुई तितली लगती हैं।
मैं नहीं मेरी कलम...............।
केशिनी फैलाती हैं जैसे सुबह मोर नाचता हो।
पलकें उठाती है जैसे अलि फूलों से बाते कर रहे हो।
अति कुंजित में शोभित लगती हैं।
तू गूंगी है पर नैनों से बाते करती हैं।
दर्पण की नजर जब तुझ पर पड़े।
टूट जाए तुझे देख कर हो जाए खड़े।
तू दर्पण से भी सौंदर्य लगती है।
मैं नहीं मेरी कलम.................।
चाहत की दरिया बूंद- बूंद टपके,
सुबह की ओस देख कर ललचाए।
खींच ले डोर प्यार के,
मेरी नजर तुझ पर ललचाए।
जादू की छड़ी रुकती नहीं।
क्या जादू हम पर चलाएगी , कुछ कहती नहीं।
तू एक पौधा के किसलय लगती है।
मैं नहीं मेरी कलम बोलती है।।

