गजल:: महफिल
गजल:: महफिल
वो हमारी महफिल में आ गए है
नज़रे उनसे बचती फिऱ रही है
कभी वो चाँद की बात करते
कभी जुल्फ़ की बदली पर अटकते
लोगों के तो जाम टकरा रहे हैं
पर उनकी मय नजरों से झलक रही है
नज़रों-नजरों से वो पूछ रहे हैं
क्या! कोई इश्क की शमा जल रही है
इस सवाल के ज़वाब में
हाँ! में हमारी नज़रे झुक रही है
वो हमारी महफिल में आ गए है
नज़रे उनसे बचती फिऱ रही है!
नूरजहाँ गजल :::: हमारी साँसों में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही हैं।।

