घूंघट पट खोलो तो सही
घूंघट पट खोलो तो सही
पूनम का चांद कैसा है घूंघट पट खोलो तो सही
तुम्हारी ये खामोशी चुभती है कुछ बोलो तो सही
दुल्हन के शृंगार में बला की खूबसूरत लगती हो
प्रेम की कंदराओं में अजंता की मूरत लगती हो
ये चांद, ये तन्हाई, रात का सन्नाटा सब चुप हैं
तुम्हारी ये खामोशी चुभती है कुछ बोलो तो सही
ये चांद कैसा दिखता है घूंघट पट खोलो तो सही
तुम्हारी ये खामोशी चुभती है कुछ बोलो तो सही
तुम कहो मरुस्थल में प्रेम पुष्प खिला सकता हूँ
चांदनी को आज अपने चांद से मिला सकता हूँ
जानता हूँ दिव्य लोक से उतरी अप्सरा हो तुम
तुम्हारी ये खामोशी चुभती है कुछ बोलो तो सही
ये चांद क्यों शरमाया है घूंघट पट खोलो तो सही
तुम्हारी ये खामोशी चुभती है कुछ बोलो तो सही
प्रेम की बगिया में भंवरों की अंतिम आस हो तुम
फासले कितने भी हों हरदम दिल के पास हो तुम
कोई ख़्वाहिश अगर बाकी है तो आज कह डालो
तुम्हारी ये खामोशी चुभती है कुछ बोलो तो सही
सुना हैं चांद में दाग है घूंघट पट खोलो तो सही
तुम्हारी ये खामोशी चुभती है कुछ बोलो तो सही।

