घूँघट की बगावत
घूँघट की बगावत


ना समझो इसे घूँघट की बगावत
बात है यह स्त्री के मान सम्मान की
देती है जो जन्म बांधे रक्षा का धागा
गाली कैसे उन नामों की दे देते है
पूजा में धोते हैं पाँव जिनके
कैसे कोख में ही उनको मार देते हैं
बड़ा करते हैं जिन्हें पाल पोस के
क्यों फिर उनका दान कर देते हैं
ब्याह के लाते हैं जिनको रस्मों रिवाजों से
कैसे उन्हें दहेज की बलि चढ़ा देते हैं
है वह भी इंसान तुम्हारी ही तरह
क्यों उसको अपनी जायदाद समझ लेते हैं
देती है हर पल जो सहारा
कैसे उस पर लाखों पहरे लगा देते हैं
उम्मीद रखते हैं मोहब्बत की जिससे
कैसे उसके जज्बातों से फिर खेलती हैं
बात करते हैं मर्यादा और इज़्ज़त की
क्यों फिर उनको बाजारों में उतार देते हैं
महसूस करते हैं जिसके बिना अधूरा खुद को
आखिर क्यों नहीं उसका सम्मान करते हैं
ना समझो इसे घूँघट की बगावत
बात है यह स्त्री के मान सम्मान की