मेरी व्यथा
मेरी व्यथा
मेरी व्यथा
क्यों सुनना चाहते हो तुम ?
क्या फिर से दोगे
कोई झूठा दिलासा ?
फिर से बन्धाओगे
मेरी आशा !
जिससे फिर
छ्ली जाऊँगी मैं
जाओ, फिर से
न तुम्हारी
बातों में आऊँगी मैं!
मेरी व्यथा, तुम्हारे लिए
सिर्फ एक कथा!
पढ़ोगे तुम
औरों को सुनाओगे
पर खुद कभी न
समझ पाओगे
सिर्फ सहानुभूति दर्शा
महान बन जाओगे!
मैं व्यथा क्यों सुनाऊँ ?
क्यों बेचारी कहलाऊँ ?
मेरा दर्द ....
मेरा ही रहना है !
इसे अकेले मुझे ही
सहना है
मेरी व्यथा किसी की
सीढियाँ नहीं है
मेरी व्यथा केवल
कथा भी नहीं है !
ये मेरा वो
अंधेरा कोना है
जो मुझे किसी से
नहीं बाँटना !
मेरी रूह चीखती है
जहाँ चुपचाप
गुजारिश है तुमसे
वहाँ कभी नहीं
झांकना !