Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Vandana Singh

Tragedy

4  

Vandana Singh

Tragedy

खामोश दर्द

खामोश दर्द

1 min
361


बाहें फैलाये दौड़ रही थी मैं

जिंदगी तुझको गले लगाने को

आँखों में लेकर कितने सपने

हौसले आसमां को छू जाने को

मैं सबको अपना समझी थी 

साजिशों से अंजान थी

गिरी औंधे मुँह तब जाना मैंने 

मैं कितनी नादान थी? 

गिरी जब पहली बार 

चोट पर मैं रोई चिल्लाई थी 

दर्द आँखों से भी बह निकला था

मैं चुपचाप सह न पायी थी 


फिर उठी, फिर दौड़ी पर

पैरों में तो थी बेड़ियाँ 

जो जाने किसने पहनाई थी ? 

सारे लगते थे मुझको अपने

मैं खुद समझ न पायी थी! 

कोई कब चुपके से आकर

मेरे पंख कुतर कर जाता है? 

 

गिर गिर कर लहूलुहान हुई मैं

पलट कर देखा पीछे तो 

कोई अपना ही मेरा मखौल बनाता है !!! 


सपनों के महल

सब चूर हुए

तब आया मुझको अब होश है

किससे करें गिला शिकवा? 

आँसू सूख चुके हैं मेरे

दर्द मेरा खामोश है!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy