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Vandana Singh

Tragedy

4  

Vandana Singh

Tragedy

खामोश दर्द

खामोश दर्द

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बाहें फैलाये दौड़ रही थी मैं

जिंदगी तुझको गले लगाने को

आँखों में लेकर कितने सपने

हौसले आसमां को छू जाने को

मैं सबको अपना समझी थी 

साजिशों से अंजान थी

गिरी औंधे मुँह तब जाना मैंने 

मैं कितनी नादान थी? 

गिरी जब पहली बार 

चोट पर मैं रोई चिल्लाई थी 

दर्द आँखों से भी बह निकला था

मैं चुपचाप सह न पायी थी 


फिर उठी, फिर दौड़ी पर

पैरों में तो थी बेड़ियाँ 

जो जाने किसने पहनाई थी ? 

सारे लगते थे मुझको अपने

मैं खुद समझ न पायी थी! 

कोई कब चुपके से आकर

मेरे पंख कुतर कर जाता है? 

 

गिर गिर कर लहूलुहान हुई मैं

पलट कर देखा पीछे तो 

कोई अपना ही मेरा मखौल बनाता है !!! 


सपनों के महल

सब चूर हुए

तब आया मुझको अब होश है

किससे करें गिला शिकवा? 

आँसू सूख चुके हैं मेरे

दर्द मेरा खामोश है!


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