कह दूँ क्या?
कह दूँ क्या?
कह दूँ क्या ?
बहुत कुछ...कहने को
जी चाहता है !
न यूँ चुप रहने को ...
जी चाहता है !
पर तुम बताओ...
सुनोगे क्या ?
सुनोगे ,तो क्या
फिर मन में अपने
मेरी बातों को ...
गुनोगे क्या ?
जाने दो...
अब पता है ...मुझे भी
तुम देखते हो मुझे,
पर सुनते नहीं हो !
कि मैं अपनी बातें
जो घंटों सुनाऊँ...
तुम बस मुस्कुरा कर
अपलक देखते हो !
जबाब देने की ...
जहमत
उठाते नहीं हो !
जो पूछूँ वो सीधा
बताते नहीं हो,
जाओ...अब मैं भी चुप हूँ !
तब तक....जब तक
मेरी चुप्पी
तुम्हें खलने न लगे !
जब तक...
तुम्हें लगने न लगे,
कि मेरा बोलना ही
ठीक था...!
इन बियाबानों में
सूने नीरव पथ पर
इसके पहले
कि तुम भटकते...
मेरा तुम्हें
टोकना ही ठीक था।
