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Vandana Singh

Tragedy

4.6  

Vandana Singh

Tragedy

मैं तुमको कौन सा गीत सुनाऊँ

मैं तुमको कौन सा गीत सुनाऊँ

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मैं तुमको कौन सा गीत सुनाऊँ ? 

दिल में मेरे दर्द अनेकों

 रोऊँ या नाचूँ गाऊँ? 

मैं तुमको कौन सा...... 


रोता है कोई सड़कों पर 

कोई सोता है महलों में

आँसू पोछूँ इनके या

उनको मैं जगाऊँ

मैं तुमको...... 


 निकले चुपके चुपके से

नजर छिपा कर हमसे जो

दे आवाज़ मैं उनको रोकूँ या 

बन अंजान छुप जाऊँ

कहो मैं तुमको 

कौन सी बात बताऊँ? 


हाथों में लिये खड़े हैं फूल

पर फिज़ाओं से आ रही बदबू

पीछे से चीखती आवाज़ें हैं

मधुर संगीत मेरे रूबरू ! 


मैं सुन लूँ उनकी पुकार या 

फूलों से दिल को बहलाऊँ? 

मैं तुमको कौन..... 

 खुद के दुःख से बचने को 

मैं गयी जहाँ भी 

 मिलता ही रहा वो

मैं किसका किसका दुःख देखूँ 

किसकी व्यथा सुनाऊँ

मैं तुमको...... 


कुछ लोग जहाँ में ऐसे भी हैं 

 पैसा जिनका भगवान हुआ

इंसान लगे जिन्हें दो कौड़ी के 

धन- बल का ऐसा अभिमान हुआ

चुगली कर दूँ उनकी मैं

या पीछा उनसे छुड़ाऊँ

मैं बस अपनी ही धुन में गाऊँ


एक राह जिस पर जाते हैं सब 

मुझको पता है भटकाती है 

एक राह बहुत सूनी सी है

मंज़िल तक जो जाती है 


मैं भीड़ चुनूँ या राह अकेली

दिल मेरा मुझसे ये पूछ रहा 

छोड़ महफ़िलें, रह एकाकी 

क्यों चलती तू, क्या तुझे मिला ? 

बीच राह में डर जाये तो 

दिल को मैं कैसे बहलाऊँ ? 

मैं तुमको कौन सा गीत सुनाऊँ ?


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