कृषि प्रधान
कृषि प्रधान
कच्चे मकान का टूटा हुआ हिस्सा
कहता है दर्द चीख के उसका
वह जो बीजता है फसलें, पेट भरने को हमारे
भर नहीं पाता पेट अपनों का
खींचता है जो हल दिन रात खेतों में
पिसता है जीवन भर कर्ज़ों में
मिलती नहीं कीमत उसे अपने पसीने की
खून रिसता है उसका लहराती फसलों में
गरीबी लाचारी के आलम में
ओढ़ लेता है कफन खुदकुशी का वह
आखिर क्यों नहीं मिलता यहां इंसाफ उसे ?
जब इस देश को कृषि प्रधान कहते हैं हम
हालत सुधरेगी जिस दिन किसान की यहां
होगी चारों तरफ खुशहाली उस दिन यहां
