नहीं बनूंगी भार
नहीं बनूंगी भार
भेजी गई ससुराल में
इस शिक्षा के साथ
लांघना नहीं दहलीज़ ससुराल की
विदा होना अर्थी के साथ
जुड़ जाओ जो रिश्तों से
हो जाए सफर आसान
वरना मन मार कर भी
रहना सबके साथ
कोशिश की जीवन भर
बन ना पाई बात
जिसके बनी घरवाली
वह देता नहीं है ध्यान
उसकी अपनी दुनिया है
कहने भर को बस रिश्ता है
कहा पिता से जब बेटी ने
नहीं रहना मुझको इसके साथ
आंखों में आंसू ला बोले
नहीं कुछ तेरे पास
कैसे चलेगा जीवन तेरा
मत बनना मुझ पर भार
उंगली उठाएगा समाज
होगी शर्म की बात
दावा करता जो प्यार का
जाने मन की बात
फिर भी साथ निभाने को
नहीं वह तैयार
मेरी अपनी जिम्मेवारी है
नहीं तू मेरी जिम्मेवारी
नहीं कुछ तेरे पास
कैसे चलेगा जीवन तेरा
मत बनना मुझ पर भार
उंगली उठाएगा समाज
होगी शर्म की बात
भाई बहन कुछ ना कर पाए
ऐसा है सभ्य समाज
पैसे से होती शुरू जिंदगी
अंत होता इस के साथ
ताना-वाना इस दुनिया का
बड़ा विचित्र है यार
ना मांगूँ मैं घोड़ा गाड़ी
ना मांगूँ मैं महल चौबारे
चाहिए मुझको प्यार
पढ़ी लिखी सशक्त हूं नारी
नहीं बनूंगी भार
ना हूं किसी पर भार।