घृणा
घृणा
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घृणा
संकीर्ण
मानसिकता के
टीस को
सहना
मुश्किल होता है
जैसे शरीर पर
सुई सी
चुभती चीज
रख दी गई हो
घृणा में लिपटे
कुटिल शब्द
भेदते हैं मन के
तार को
और तार तार
हो जाता है हृदय
और उसकी भावना
घृणा मार सकती है
अंतरात्मा तक को
इसलिए प्रेम करो
घृणा मत करो
कभी भी
किसी से
हां किसी से !