घिनौनी निशानियाँ
घिनौनी निशानियाँ
कितना बेहतरीन था भूत मेरा
साथ थे हम सब,
न कोई अणु बम
न परमाणु बम।
न ईर्ष्या न द्वेष
न मन में कोई रोष,
न कोई टेक्नोलॉजी
न सीमाओं पर फौजी।
न ऊंची नीची जातियाँ
ये सब हैं हमारी तरक्की
की घिनौनी निशानियाँ।
कहाँ है अब
प्रकृति माँ की गोद का वो आनंद,
झरने और नदियाँ जो बहते मंद-मंद।
चिड़ियों की चहक
फूलों की महक
काश पाषाण युग में ही जान पाता,
अपनी इस तरक्की का कलुषित
स्वरूप जान जाता।
अनभिज्ञ था तब
कि ऐसा युग भी आएगा,
जब व्यक्ति स्वयं को
अकेला पाएगा और
खुद को कई अनगिनत
परतों के नीचे छुपाएगा।
