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Amit Kumar

Romance Fantasy

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Amit Kumar

Romance Fantasy

ग़ज़लें गुनगुनाता हूँ

ग़ज़लें गुनगुनाता हूँ

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फिर वही ग़ज़लें मैं गुनगुनाता हूँ,

तेरी यादों को ओढ़ता बिछाता हूँ।


बस एक ही दफा देखा तुझे, मैंने किनारे पर,

तब से हर रोज़ उस दरिया, को मिलने जाता हूँ।


वो मखमली सी शाम की लाली थी अम्बर में,

तेरे रुखसार का, पानी मैं बताता हूँ।


चांद जब भी चमकता है पूरे ईमान से,

चाँदनी तुम ही हो, उसको मैं बताता हूँ।


तपती धूप में मैं सुकूँ पाता हूँ,

तेरी पलकों के साये में बैठ जाता हूँ।


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