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कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

4  

कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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320


हमें अब भी मुहब्बत की कहानी याद आती हैं

मुहब्बत ने हमें बख़्शी निशानी याद आती हैं


मुहब्बत हैं नहीं सच्ची यहाँ अब तो तमाशा हैं

 मुहब्बत यार होती थी रूहानी याद आती हैं


हमारे प्यार की खातिर ज़माने से लड़ी थी जो

 हमें अब भी वही पगली दीवानी याद आती हैं


हवा मग़रूर थी जिस पल तभी मदहोश मौसम था

खिली थी चाँदनी नभ में वही रुत अब सुहानी याद आती हैं


 जहाँ दिलबर के निशा दिखते वही अपनी ज़बी रखते

 थी नदियों सी मुहब्बत की रवानी याद आती हैं


जहाँ कच्चे मकानों में मुहब्बत पक्की रहती थी

नगर की अब वही बस्ती पुरानी याद आती हैं


हसीनों की अदाओं पर यहाँ अब जान देते है

वतन पर हो गई कुर्बान यारों वो जवानी याद आती हैं


यहाँ हर घर लगें हैं आज नागफनी ही गमलों में

धरम सुन्दर सुहानी रात रानी याद आती हैं


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