ग़ज़ल
ग़ज़ल
हमें अब भी मुहब्बत की कहानी याद आती हैं
मुहब्बत ने हमें बख़्शी निशानी याद आती हैं
मुहब्बत हैं नहीं सच्ची यहाँ अब तो तमाशा हैं
मुहब्बत यार होती थी रूहानी याद आती हैं
हमारे प्यार की खातिर ज़माने से लड़ी थी जो
हमें अब भी वही पगली दीवानी याद आती हैं
हवा मग़रूर थी जिस पल तभी मदहोश मौसम था
खिली थी चाँदनी नभ में वही रुत अब सुहानी याद आती हैं
जहाँ दिलबर के निशा दिखते वही अपनी ज़बी रखते
थी नदियों सी मुहब्बत की रवानी याद आती हैं
जहाँ कच्चे मकानों में मुहब्बत पक्की रहती थी
नगर की अब वही बस्ती पुरानी याद आती हैं
हसीनों की अदाओं पर यहाँ अब जान देते है
वतन पर हो गई कुर्बान यारों वो जवानी याद आती हैं
यहाँ हर घर लगें हैं आज नागफनी ही गमलों में
धरम सुन्दर सुहानी रात रानी याद आती हैं।